Dar-B-Dar, The Itinerants Trailer
This documentary film explores the stories of the street hawkers in a market at Lallubhai Compound, Mumbai. The challenges that are faced in dealing with everyday realities by the hawkers, is the central theme around which the film revolves. In doing so, the film also introduces the space of the market as the central character of the film, which grew out of the rehabilitated population from the slums of the city.
A film by: Akash Basumatari, Arpita Katiyar, Radhika Agarwal, Rajendra Jadhav, Saurabh Kumar, Sujata Sarkar
बाज़ार/पैठ/मार्किट/मंडी ऐसे कई शब्द है जिनसे हम एक ऐसी जगह को संबोधित कर सकते है, जहाँ हमारे दैनिक जीवन यापन की महत्वपूर्ण चीजें आसानी से उपलब्ध हो जाती है और उसके लिए हमे ज्यादा मशक्कत भी नहीं करनी पड़ती |
दरअसल समाज के विभिन्न वर्गों के अनुसार ही वहां के बाज़ारों की व्यवस्था और साज-सज्जा तय होती है. कही पर बाज़ार खरीदार और विक्रेता, दो भागो में बंटा दिखता है तो कही दोनों सामान होते है |
बॉम्बे जैसे शहर में आपको हर तरह के बाज़ार आसानी से देखने को मिल सकते है. कुछ ऐसे है जहाँ खरीदारी कम लेकिन घूमना-फिरना ज्यादा होता है तो कई जगह लोग सिर्फ ओ सिर्फ पेट की भूख शांत करने के लिए जाते है. लेकिन इन सभी बातों में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि हमारे लिए, माने हर एक व्यक्ति-विशेष के लिए बाज़ार की कल्पना उसकी आर्थिक स्थिति पर आकर शुरू होती है और उसी पर ख़त्म भी हो जाती है |
बाज़ार से सामन खरीदने की क्षमता कुल-मिलाकर जेब पर निर्भर करती है और जब वही जेब सरकार द्वारा खाली कराकर, आपका घर छीनकर एक ऐसी जगह पर आपको बिठाया जाता है जहाँ सुविधाओं के नाम पर सिर्फ कंक्रीट की ईमारत और सामान्य सुविधाओं के इस्तेमाल से पहले उनके लम्बे-चोडे बिल हो तो बाज़ार शब्द बेमानी लगने लगता है |
बंबई के मानखुर्द जैसे इलाकें में वहाँ के वयस्क जब नशे की गिरफ्त में हो और जो महिलाएं लम्बे समय से घरो में काम करके आपना परिवार चलाती हो अब वही महानगर से दूर फैक दिए जाने के कारण बेरोजगार हो चुकी हो तो वहाँ के बाज़ारों में क्या बिकता होगा इसकी कल्पना करना थोडा मुश्किल है |
जब आप बाज़ार में खरीदार और विक्रेता जैसे शब्दों को भूलकर टहलने और तराजू के इस पार और उस पार में बसे अंतर को समझने की कोशिश करते है तो आप कई कहानियों से रुबरु होते जिसमें से कुछ को हमने एक वृतचित्र की शक्ल देने की कोशिश की है. और इसको हमने नाम दिया है दर-ब-दर, फ़िल्म बनकर तैयार है और हम जल्द ही इसको लेकर दर्शकों के बीच पहुचेंगे तब तक के लिए आप सभी के लिए दर-ब-दर की पहली झलक यहाँ मौजूद है |
निर्देशन/छायांकन/ध्वनि – आकाश, अर्पिता, राधिका, राजेंद्र, सुजाता और सौरभ
निर्माता – स्कूल ऑफ़ मीडिया एंड कल्चरल स्टडीज, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज, मुंबई
विशेष आभार – लल्लूभाई कंपाउंड के सभी साथी और कामगार