राष्ट्र मीडिया की चुप्पी और जनता की पहल; ‘पब्लिक बोलती’
पब्लिक बोलती, जनता से जनता तक
वैश्विक महामारी (COVID-19 ) के भारत मे दाखिल होने के बाद ऐसे कई अवसर आये जब केंद्र और राज्यों की सरकारों को सचेत हो जाना चाहिए था। लेकिन सत्ता और पूंजी को खोने के डर से तुरंत लिए जाने वाले सख्त कदम पीछे टलते रहे और जब महामारी काबू से बाहर हो गई तब केवल 4 घंटे के नोटिस पर पूरे देश मे तालाबंदी कर दी गई।
बदतर होते हालातों में जब देश की मीडिया को संयम से निष्पक्ष जानकारी देने की जरूरत थी तब वे अपना टीआरपी का न खत्म होने वाला खेल खेल रहे थे। लोग सोशल मीडिया का सहारा अपनी शिकायतों को दर्ज़ करने के लिए प्रयोग कर रहे थे, जो नाकाफ़ी था और इन सबसे दूर देश का सबसे बड़ा मजदूर तबगा सरकारी मदद की आस में खुद को घर मे कैद करके अपनी जमा पूंजी के खत्म होने का इंतजार करने लगा।
मीडिया हर रोज तालाबंदी के दिनों की संख्या टेलीविजन स्क्रीन पर दिखाता लेकिन मामूली सी जन स्वास्थ्य सेवाओं के ठप्प हो जाने से हो रहे ‘सरकारी हत्याओं’ को दिखाने से चूक जाता। उसके बाद लंबे समय तक इंतजार और भूख से बेहाल प्रवासी मजदूर, सड़कों पर हजारों किलोमीटर के अपने घर वापसी की अंतहीन यात्रा पर निकला। इन सभी हालातों में कुछ युवा साथियों ने एक दूसरे की मदद से “पब्लिक बोलती” नाम से एक मुहिम पर मुंबई शहर में काम शुरू किया।
पब्लिक बोलती अभियान, भारत के लोगों के लिए एक नागरिक पत्रकारिता और वकालत का मंच है। जिसे खासतौर पर COVID-19 महामारी से प्रभावित लोगों और उस दौरान घोषित राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के कारण होने वाली समस्याओं को उजागर करने के लिए शुरू किया गया था। लॉकडाउन, जिसने देश को एक ठहराव में ला दिया और न केवल लाखों लोगों की आजीविका खत्म हुई बल्कि भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य सुविधा जैसी बुनियादी जरूरतें मानों गायब हो गई।
इस साल विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत का स्थान दो पायदान गिरकर 142 वें स्थान पर आ गया। इस कारण मीडिया कर्मियों और देश भर में भारी सेंसरशिप के बढ़ते विरोध के साथ, स्वतंत्र और भरोसेमंद मीडिया प्लेटफार्मों की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है।
जनता की पहल जनता के लिए:
पिछले 3 महीनों में लगभग 17 विषयों पर 47 स्टोरी इस अभियान ने ऑडिओ-विसुअल माध्यम मे की है। 12 राज्यों से आये इन सभी मामलों में अधिकतर विषयों मे से कुछ पर राज्य और जिला प्रशासन ने तत्परता दिखाई तो कुछ मे स्वतंत्र संस्थाओं का साथ इस अभियान को मिला।
मुहिम में शामिल साथियों की माने तो इस अभियान को शुरू करने का मसकद सिर्फ इतना था कि देशभर के नागरिक अपनी चिंताओं और परेशानियों को बेझिझक अन्य लोगों और जवाबदेह राज्य सरकारों के सामने रखे। मोबाईल फ़ोन से मिल रहे वीडियो संदेशों को बेहतर ढंग से संपादित कर, यह मुहिम देशभर में नागरिक पत्रकारिता के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रही है। आत्मनिर्भरता के नाम पर बेसहारा छोड़ दिये गए इस देश के नागरिक अपनी आवाज खुद बने यही वतर्तमान हालत की जरूरत भी है।
यहाँ प्राथमिक उद्देश्य उन आवाज़ों को बढ़ाना है जो प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। कमजोर समुदायों के मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करना अब जरूरी हो गया हैं। सरकारी अधिकारियों पर यह दबाव हो कि वो प्राथमिकता से जनमानस की समस्याओ को संबोधित करें। यह अभियान एक गैर-लाभकारी उपक्रम है जो पूरी तरह से विभिन्न व्यवसायों से संबंधित स्वयंसेवकों के एक समूह के नेतृत्व में काम कर रहा है। इस मुहिम को काम के लिए कोई फंड अथवा चंदा कही से प्राप्त नहीं हो रहा है। देशभर के नागरिकों तक पहुँच बनाने और जागरूकता फैलाने के लिए यह मुहिम विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में स्वयंसेवक साथियों को खोज रहा है और उसमें सफल भी हो रहा है।
मुश्किल समय में नागरिक पत्रकारिता की जिम्मेदारी लेने वाले:
दुनियाभर की जन स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहाल कर देने वाला ये वाइरस जब भारत में दाखिल हो रहा था तब देश के हर छोटे-बड़े मीडिया संस्थान की नजर केंद्र शासित सरकार द्वारा अमरीकी राष्ट्रपति की मेहमाननवाजी की तरफ थी। 30 जनवरी 2020 को केरल राज्य में पहला कोरोना संक्रमित व्यक्ति पाया जाता है और ठीक 24 दिन बाद भी चीन, इटली और स्पेन से आ रही भयावह खबरों को नजरंदाज करते हुए देशभर के न्यूज चैनल भारत सरकार के महिममंडन में लगे हुए थे।
जब बात अधिक बिगड़नी शुरू हुई तो मीडिया ने रुख बदला और डर को बेचना शुरू किया और जिसमें वो सफल भी रहे। बात सरकार के हाथ से निकली तो सोचे समझे बिना देश भर में तालाबंदी कर दी गयी। एक एक करके हर जरूरत की चीज आम जन से दूर होने लगी और सरकारी और निजी अस्पतालों के बंद होने पर सबसे बड़ा प्रभाव पड़ा। शुरुआत से अब तक मुंबई शहर का महाराष्ट्र राज्य इस वाइरस की चपेट में सबसे ज्यादा रहा और यही से पब्लिक बोलती अभियान जैसी पहल की सोच भी निकली।
शहर मे प्रवासी भारतीय विभिन्न मुद्दों से परेशान थे जिनमे सबसे अहम बेरोजगारी, राशन और घर का किराया थे। इस पहल मे काम कर रहे साथी, एक दूसरे से इन विषयों को बार बार साझा कर रहे थे और खुद प्रवासियों द्वारा बनाए जा रहे वीडियो पर चर्चा करते हुए ये समझे कि इन सभी मजदूरों की समस्याओं को उनसे बेहतर और कोई नहीं बता सकता और व्हाट्सअप जैसे माध्यमों से आ रहे इस तरह के वीडियो अपने आप में समस्या को बताने के लिए काफी है।
स्वतंत्र पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कलाकारों और छात्रों की मदद से विषय की गंभीरता को देखते हुए मार्च के अंतिम सप्ताह में इस मुहिम पर काम होना शुरू हुआ और प्रभावित लोगों के माध्यम से आते संदेशों को व्यवस्थित ढंग से विभिन्न सोशल मीडिया के ठिकानों पर साझा करना काफी सफल रहा। अप्रेल के मध्य में वीडियो संदेशों की संख्या अधिक बढ़ी तो विभिन्न व्यवसायों में शामिल दोस्त और सोशल मीडिया से साथी भी मदद के लिए सामने आये।
लॉकडाउन की शर्त को मानते हुए इस अभियान में शामिल सभी साथी अपने घरों से ही विभिन्न स्तर पर अपना सहयोग देने लगे। जो लोग सामाजिक स्तर पर प्रवासी मजदूरों, प्रवसियों और जरुरतमन्द लोगों के संपर्क मे थे उन्होंने फ़ोन के माध्यम से वीडियो को सही ढंग से रिकार्ड और जानकारी के विवरण को और सरल बनाया। वीडियो आने के बाद उसे कम समय सीमा और अधिक जानकारी के साथ कैसे प्रस्तुत किया जाए इसमे मदद की कुछ वीडियो पत्रकारों, स्वतंत्र फ़िल्मकारों और छात्रों ने बाकी सोशल मीडिया पर जनता की आवाज को और बुलंद करने और जल्द से जल्द मदद मिलने का जिम्मा देशभर के नागरिक, पत्रकार और छात्र बिना किसी स्वार्थ के उठा रहे है।
मुंबई, महाराष्ट्र से बाहर कई राज्यों में यह अभियान आम जनता की मदद करने की कोशिश मे लगा है। देशभर की प्रांतीय भाषाओं को प्राथमिकता देकर अंग्रेजी भाषा की मदद से कई महत्वपूर्ण और अतिआवश्यक जानकारी और खबरें बाहर आ रही है। वर्तमान में देश के नागरिक जिन परिस्थितियों में है भविष्य में उनका रूप क्या होगा कहना मुश्किल है लेकिन नागरिक पत्रकारिता की यह पहल अगर यूँ ही चलती रही तो आशा है कि कई जान बचना मुमकिन होगा और देशभर में समन्वय और समानता भी बढ़ेगी।